बेरोजगारी
अर्थ-एक शारीरिक और मानसिक रूप से सक्षम व्यक्ति जो काम करने की इच्छा रखता लेकिन उसे काम ना मिले तो ऐसी स्थिति को बेरोजगारी कहते हैं।
बेरोजगारी की स्थिति में व्यक्ति अपनी मूलभूत आवश्यकताओं को पूरा नहीं कर पाता है, मूलभूत आवश्यकताओं के अंतर्गत रोटी,कपड़ा और मकान आता है।
बेरोजगारी के प्रकार –
बेरोजगारी निम्नलिखित प्रकार के होते हैं,जैस-
सामान्य बेरोजगारी –
ऐसी बेरोजगारी जहां व्यक्ति प्रचलित दर पर काम करने के लिए तैयार हो जाता है लेकिन उसे काम नहीं मिल पाता है,तो उसे सामान्य बेरोजगारी कहते हैं।
संरचनात्मक बेरोजगारी –
जब किसी देश की भौतिक, वित्तीय और मानवीय संरचना कमजोर होती है तो इससे पैदा होने वाली फिर उस कार्य को संरचनात्मक बेरोजगारी कहते है, जैसे,
भौतिक-परिवहन,उत्पादन ना होना,बिजली ना होना शिकारी
वित्तीय-निवेश ना होना
मानवीय-कौशल,ज्ञान,तकनीक ना होना ।
प्रछन्न या छिपी बेरोजगारी –
जब किसी कार्यस्थल पर आवश्यकता से अधिक लोग नियोजित होते हैं अर्थात कार्य कम लेकिन लोग ज्यादा हो तो उसे प्रछन्न बेरोजगारी कहते हैं, जैसे-भारत में कृषी पर निर्भरता-लेकिन परिवार बढ़ता जा रहा है लेकिन निर्भरता थोड़ी सी भूमि पर ही रहती है, सरकारी स्कूल में 10 बच्चे हैं और शिक्षक 5 है।
मौसमी बेरोजगारी –
जिस किसी काल समूह को साल में कुछ महीने कार मिलता है बाकी मैंने कार नहीं मिल पाता है तो ऐसी बेरोजगारी को मौसमी बेरोजगारी कहते हैं।ऐसी बेरोजगारी भारत में किसी मानसून पर निर्भर करती है। जैसे, आइसक्रीम,कूलर,रजाई व्यापारी आदि।
चक्रीय बेरोजगारी –
जब अर्थव्यवस्था के चक्र में मंदी का दौर आता है तो उसे चक्रिय बेरोजगारी कहते हैं। जैसे विकसित देशों में मंदी का दौर आता है तो उत्पादन प्रभावित होता है, जिससे रोजगार प्रभावित होता है।
अल्प बेरोजगारी –
जब किसी व्यक्ति को योग्यता से कम कर मिलता है तो उसे अल्प बेरोजगारी करते हैं जैसे,
पीएचडी वालों का चपरासी पर भर्ती होना।
एमबीबीएस वालों को कंपाउंडर का काम मिलना।
घर्षणात्मक बेरोजगारी –
घर्षणात्मक बेरोजगारी अर्थव्यवस्था में आने वाली परिवर्तन से जुड़ी होती है, जैसे-
1-किसी अर्थव्यवस्था में उत्पादन घर जाना।
2-जब कोई नौकरी बदल ले।
3-जब कोई पुरानी बड़ी कंपनी बंद करके,छोटी कंपनी खोल ले।
4-जब किसी वस्तु की मांग बदल जाए।
अक्षमता बेरोजगारी –
शारीरिक और मानसिक रूप से अक्षम होना ही अक्षमता बेरोजगारी कहलाता हैं।
शिक्षित बेरोजगारी –
दोषपूर्ण शिक्षा प्रणाली के कारण तकनीकी कुशलता में कमी के कारण आने वाली बेरोजगारी शिक्षित बेरोजगारी कहलाती है।
खुली बेरोजगारी / प्रत्यक्ष बेरोजगारी –
संभल के अंतर्गत आने वाला वह व्यक्ति जिसे ‘न्यूनतम वेतन’ पर अधिकार प्राप्त नहीं होता है उसे खुली बेरोजगारी या प्रत्यक्ष बेरोजगारी कहते हैं।
भारत में बेरोजगारी की प्रवृत्ति –
ग्रामीण क्षेत्रों की अपेक्षा शहरी क्षेत्रों में बेरोजगारी अधिक है।
कुल बेरोजगारी में शैक्षणिक बेरोजगारी का विस्तार अधिक है।
पुरूषों की अपेक्षा महिलाओं में बेरोजगारी का दर अधिक है।
अन्य क्षेत्रों की अपेक्षा कृषि क्षेत्र में बेरोजगारी अधिक है।
बेरोजगारी मापन –
बृज काली माता के लिए 1970 मैं भगवती कमेटी बनाई गई। भगवती कमेटी की सिफारिश पर NSSO ने मापन के 3 तरीके बताएं –
1-दीर्घकालिक बेरोजगारी
2-साप्ताहिक रोजगारी
3-दैनिक बेरोजगारी
बेरोजगारी के निवारण –
पुरानी शिक्षा नीति में बदलाव।
व्यवसायिक व तकनीक शिक्षा पर अधिक जोर देना।
जनसंख्या वृद्धि पर नियंत्रण किया जाए
लघु एवं कुटीर उद्योग धंधों का विकास किया जाना चाहिए।
बेरोजगारों को रोजगार के लिए प्रशिक्षण एवं ऋण उपलब्ध कराना चाहिए।
कृषि को वैज्ञानिक पद्धति से करने के लिए किसानों को प्रोत्साहित करना चाहिए।