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बिहार में चंपारण सत्याग्रह के कारणों एवं परिणामों का वर्णन कीजिए

चंपारण सत्याग्रह के कारण

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पूरे देश की तरह बिहार में भी किसान अंग्रेजों के सताए हुए थे लेकिन बिहार में प्रथम प्रमुख आंदोलन चंपारण आंदोलन हुआ इसमें किसानों की मांग को पूरा करते हुए तिनकठिया प्रथा को समाप्त किया गया एवं किसान को लगाने में भी छूट दी गई और उसकी क्षतिपूर्ति भी की गई लेकिन इस आंदोलन की सफलता का सर्वप्रथम कारण यह रहा कि इस आंदोलन में महात्मा गांधी के हस्तक्षेप के द्वारा यह आंदोलन सफल हुआ

गांधी जी का आगमन जनवरी 1915 को दक्षिण अफ्रीका से भारत में हुआ सर्वप्रथम भारत में चंपारण सत्याग्रह की शुरुआत महात्मा गांधी ने राजकुमार शुक्ल के आग्रह पर किया वहां पर किसानों की स्थिति का आकलन करने के लिए राजकुमार शुक्ल ने महात्मा गांधी को प्रेरित किया अप्रैल 1917 में गांधी जी का आगमन बिहार के चंपारण में हुआ वहां पूरे देश का ध्यान किसानों की समस्या ने अपनी और आकर्षित किया चंपारण आंदोलन में राजेंद्र प्रसाद ब्रजकिशोर प्रसाद अनुग्रह नारायण सिंह इत्यादि ने गांधीजी का सहयोग दिया

इसके लिए एक कमेटी बनाई गई जिसके सदस्य महात्मा गांधी को रखा गया किसानों को गोरे जमींदार बलपूर्वक नील की खेती के लिए बाध्य करते थे प्रत्येक 20 कट्ठा पर उन्हें 3 कट्ठा नील की खेती करने के लिए बातें करते थे इसीलिए इसे तीन कठिया व्यवस्था कहते हैं इस कमेटी ने इस दिन का दिया प्रथा को समाप्त कर दिया!

चंपारण सत्याग्रह के परिणाम

इस चंपारण सत्याग्रह की सफलता ने राष्ट्रीय आंदोलन में एक नया मोड़ दिया वहीं बिहार के किसान को अंग्रेजों से लड़ने का साहस भी दिया चंपारण के बाद कुछ अन्य आंदोलन भी बिहार में हुए 1919 में मधुबनी जिला के किसान को दरभंगा राज के विरुद्ध आंदोलन के लिए स्वामी विद्यानंद ने संगठित किया लगान वसूली के क्रम में राज्य के स्वास्थ्य को अत्याचार के विरुद्ध आंदोलन था जंगल से फल एवं लकड़ी प्राप्त करने का अधिकार भी आंदोलन करना चाहते थे

विद्रोहियों की ने कांग्रेस का समर्थन पाना चाहा परंतु दरभंगा महाराज जी के कांग्रेसमें प्रभाव के कारण कांग्रेसियों ने समर्थन नहीं दिया जिससे आंदोलन हिंसक हो गया एवं इसका विस्तार पूर्णिया सहरसा भागलपुर तक हो गया कुछ समय बाद में किसानों की मांगों को स्वीकार कर लिया गया जिससे आंदोलन शिथिल हो गया!

1928 में स्वामी सहजानंद सरस्वती ने किसान सभा की स्थापना कर किसान आंदोलन को एक निर्णायक मोड़ दिया में से 36 में अखिल भारतीय किसान सभा का गठन हुआ जिसके अध्यक्ष स्वामी सहजानंद सरस्वती एवं महासचिव प्रोफेसर एनजी रंगा थे इन्होंने किसानों की समस्या के प्रति पूरे देश का ध्यान अपनी ओर आकर्षित करने का प्रयास किया लेकिन ज्यादा सफल ना हो रहा बाद में किसान आंदोलन कार्यों का झुकाव साम्यवादी दल के प्रति हो गया चंपारण में गांधी एवं गांधीवाद का प्रवेश द्वार था और यह प्रथम सत्याग्रह था इसके बाद उन्होंने ऐसे कई प्रयोग राष्ट्रीय स्तर पर किए वहीं वे कांग्रेसका सर्वमान्य एवं जन सामान्य के सर्वप्रिय नेता हो गए बिक्री हुई कांग्रेस एवं राष्ट्रीय राजनीति में उनके नेतृत्व में एक हो गए गरम दलों एवं नरम दलों का प्रभाव खत्म हुआ एवं गांधीवादी चरणों का प्रारंभ हुआ आंदोलन भाभी किसान आंदोलन का नेतृत्व क्षमता का मार्गदर्शक बना!

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