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महत्वपूर्ण पर्यावरणविद्

महत्वपूर्ण पर्यावरणविद्

हमारे देश में पर्यावरणविद् ने समय-समय पर पर्यावरण संरक्षण के लिए महत्वपूर्ण योगदान दिया है, जो इस प्रकार है-

डॉक्टर एम.एस.स्वामीनाथन

डॉक्टर एम.एस.स्वामीनाथन को सुप्रसिद्ध कृषि वैज्ञानिक एवं पर्यावरणविद् के लिए जाना जाता है तथा भारत में हरित क्रांति के जनक के रूप में जाना जाता है। इन्होंने ‘मैक्सिकन बौनीन प्रजाति’के गेहूं को भारत में विकसित किया, जिससे देश ने अन्नू उत्पादन में आत्मनिर्भरता प्राप्त की। इन हेर राइट लिवली हुड, मैग्सेसे तथा पद्म विभूषण जैसे कई अंतरराष्ट्रीय एवं राष्ट्रीय पुरस्कारों से सम्मानित किया जा चुका है।

श्रीचंडी प्रसाद भट्ट-

श्री चंडी प्रसाद भट्ट ने वर्ष 1964 में “दासोली ग्राम स्वराज मंडल”नामक संस्था की स्थापना किए तथा इन्हें “चिपको आंदोलन के प्रणेता”के रूप में भी जाना जाता है। चिपको आंदोलन के सूत्रधार बने। इन्होंने, वृक्षों एवं वनों की रक्षा के लिए चिपको आंदोलन प्रारंभ किया जो आज पेड़ों की रक्षा करने  क्षेत्र में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रही है।

सुंदरलाल बहुगुणा-

सुंदरलाल बहुगुणा सुप्रसिद्ध पर्यावरणविद है, जो वृक्ष को काटने से बचाने हेतु चिपको आंदोलन को जन आंदोलन का रूप प्रदान किया। सुंदरलाल बहुगुणा को उत्तर भारत में चिपको आंदोलन का संस्थापक माना जाता है तथा इन्होंने  ‘टिहरी बांध’ के खिलाफ भी आंदोलन चलाया।

पांडुरंग हेगड़े –

पांडुरंग हेगड़े ने दक्षिण भारत अर्थात कर्नाटक में चिपको आंदोलन को प्रभावशाली बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका अदा की। जिसके फलस्वरूप बनो का विकास रुक गया।

बाबा आमटे –

बाबा आमटे एक प्रख्यात पर्यावरणविद् एवं सामाजिक कार्यकर्ता थे। इन्होंने ‘नर्मदा बचाओ आंदोलन’पर महत्वपूर्ण भूमिका अदा की तथा ‘सरदार सरोवर बांध’ स्थल से  अनेक लोगों के हटाए जाने के विरुद्ध आंदोलन को बल दिया।

मेधा पाटेकर –

मेधा पाटेकर एक जानी-मानी पर्यावरणविद् एवं सामाजिक कार्यकर्ता थी। जिन्होंने ‘नर्मदा बचाओ आंदोलन’ की बागडोर संभाली। नर्मदा घाटी परियोजना द्वारा विस्थापित लोगों की समस्याओं को सामने रखने में एक महत्वपूर्ण भूमिका अदा की।

डॉक्टर सलीम अली –

एक प्रसिद्ध पक्षीविज्ञान विशेषज्ञ थे। इन्होंने पक्षियों का अध्ययन और पोषण करने में सदैव अपने आप को व्यस्त रखा। इसलिए इन्हें ‘पक्षी प्रेक्षक’ भी कहा जाता है। इनकी पुस्तक “Book of India Birds”बहुत प्रसिद्ध हुआ। इनकी आत्मकथा “Fall of a sparrow”सभी प्रकृति जिज्ञासु द्वारा पड़ी जाने लगी। भारत सरकार द्वारा जम्मू कश्मीर में इनके नाम से ‘सलीम अली राष्ट्रीय उद्यान’, सलीम अली राष्ट्रीय पुरस्कार तथा फेलोशिप प्रदान करती है।

सुगाथा कुमारी –

यह केरल की सुप्रसिद्ध पर्यावरणविद है। यें ‘प्रकृति संरक्षण समिति’ के संस्थापिका हैं। इनके द्वारा केरल में ‘साइलेंट वैली’को बचाने के लिए चलाए गए आंदोलन को ‘सेव साइलेंट वैली आंदोलन’ के रूप में जाना जाता है। पर्यावरणविद् होने के साथ-साथ सुगाथा कुमारी प्रसिद्ध कवियित्री भी थी। इन्हें काव्य संग्रह ‘मनलेक्षुत’के लिए वर्ष 2012 के सरस्वती सम्मान से अलंकृत किया गया।

सालूमरदा थिमक्का –

यह कर्नाटक की एक सुप्रसिद्ध पर्यावरणविद् एवं सामाजिक कार्यकर्ता हैं। इसने 400 बरगद के वृक्ष सहित 8000 से अधिक वृक्षों को लगाया,जिसके लिए उन्हें वृक्ष माता की उपाधि दिया गया है। 107 वर्षीय सालूमरदा को राष्ट्रपति श्री रामनाथ कोविंद ने 16 मार्च 2019 को पद्मश्री पुरस्कार से पुरस्कृत किया।

अनुपम मिश्र –

अनुपम मिश्र बहुत जाने-माने पर्यावरणविद् है, तथा इनके ही प्रयासों से देश में पर्यावरण रक्षा का विभाग खुला। इन्होंने वर्ष 2001 में दिल्ली में स्थापित “सेंटर फॉर एनवायरमेंट एंड फूड सिक्योरिटी’के संस्थापक सदस्यों में से एक थे। इन्होंने उत्तराखंड के चिपको आंदोलन में जंगलों को बचाने में चंडी प्रसाद भट्ट का सहयोग किया। ये राजेंद्र सिंह की संस्था ‘तरुण भारत’ के अध्यक्ष भी रहे। इन 1996 देश के सर्वोच्च पर्यावरण पुरस्कार और मध्य प्रदेश सरकार का चंद्रशेखर आजाद राष्ट्रीय पुरस्कार से भी सम्मानित किया गया।

कल्लन‌ पोक्कडान-

एक केरल के प्रसिद्ध पर्यावरणविद् है। अमन ग्रोव स्कूल के संस्थापक है, जो मैंग्रोव के परिस्थितिक महत्व के बारे में लोगों को शिक्षित करने का प्रयास करते हैं।

जैकब –

ये केरल राज्य में पर्यावरण आंदोलन के अग्रदूतों में एक थे। इन्होंने पर्यावरण शिक्षा के लिए सोसाइटी की शुरुआत की तथा दक्षिण केरल में ‘साइलेंट वैली परियोजना’के खिलाफ आंदोलन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।

कल्याण सिंह रावत –

कल्याण सिंह रावत एक पर्यावरणविद् तथा ‘मैती आंदोलन’के प्रणेता माने जाते हैं,तथा इनका जन्म अक्टूबर 1953 में उत्तराखंड में हुआ था। इनके द्वारा 1995  में शुरू किया गया मैती आंदोलन प्रकृति एवं पेड़ों से भावनात्मक लगाव पर आधारित तथा वृक्षारोपण के साथ संरक्षण पर भी जोर दिया गया। मैथी परंपरा के तहत विवाह के समय वर-वधू द्वारा एक पौधा लगाया जाता था।

डॉक्टर नार्मन बोरलॉग –

इन्हें विश्व में हरित क्रांति का जन्मदाता माना जाता है। 84 वर्षीय महान कृषि वैज्ञानिक नार्वे मूल के हैं जो अब अमेरिका के नागरिक हैं। 1950 में इन्होंने गेहूं पर शोध आरंभ किया और 60 के दशक में इन्होंने ‘सुनारा-65’ और ‘वर्मा रोहो’ नामक गेहूं की प्रजातियों की खोज की। ये प्रजातियां सामान्य गेहूं से तीन गुनी उपज देती थी। इन्हें 1970 में नोबेल शांति पुरस्कार से सम्मानित किया गया।

राजेंद्र सिंह –

ये प्रसिद्ध भारतीय पर्यावरणविद् है। इन्हें “जल पुरुष” के उपनाम से जाना जाता है। “तरुण भारत संघ”नामक एक गैर सरकारी संगठन के चेयरमैन रहे। वर्ष 2001 में इन्हें रोमन मैक्सिस पुरस्कार प्रदान किया गया था। 2015 में इन्हें “स्टॉकहोम वाटर प्राइस” से सम्मानित किया गया।

यूजीन पी.ओडम –

प्रो. ओडम “परिस्थितिक एवं पर्यावरण विज्ञान के जनक” के रूप में जाने जाते हैं। इन की प्रसिद्ध पुस्तक “फंडामेंटल्स आफ अकोलाजी”ने इस विषय पर अंतरराष्ट्रीय स्तर पर शोध में क्रांति ला दी। इन्होंने जाजिया विश्वविद्यालय में “इंस्टिट्यूट ऑफ इकोलॉजी”की स्थापना की।

ए.जी.टैन्सले –

अंतर्रष्ट्रीय ख्याति प्राप्त परिस्थितिकी विशेषज्ञ हैं। जिन्होंने ‘1935 में पारिस्थितिकी तंत्र शब्द’ का प्रयोग किया। जो आज भी विश्व में मान्य है।

जाधव मोलाई पायेंग –

ये असम के रहने वाले थे तथा बचपन से ही प्रकृति प्रेमी थे। इन्होंने ब्रह्मपुत्र नदी के एक वीरान टापू पर वृक्षारोपण कर अपने प्रति प्रेमी होने का स्पष्ट प्रमाण प्रस्तुत किया। जिससे इस जंगल का नाम “मलाई फॉरेस्ट”रखा गया। इन्हें इस अद्भुत उपलब्धि के लिए वर्ष 2015 में भारत के सबसे उच्च नागरिक सम्मान पद्मश्री से नवाजा गया।

रविंद्र कुमार सिन्हा –

रविंद्र कुमार सिन्हा को डॉल्फिन के संरक्षण एवं सर्वे पर किए गए अथक प्रयास के चलते “डॉल्फिन मैन आफ इंडिया”की संज्ञा दिया जाता है। इनके अनुसार “राष्ट्रीय जल जीव डॉल्फिन (स्तनधारी) मछलियों की सर्वाधिक संख्या बिहार में पाई जाती है।

डॉ राम देव मिश्रा –

प्रो. राम देव मिश्रा को भारत में परिस्थितिकी के जनक माना जाता है। उन्होंने 1937 में परिस्थितिकी में पी.एच.डी. डिग्री लीड्स विश्वविद्यालय इंग्लैंड से प्राप्त की। बनारस हिंदू विश्वविद्यालय में शिक्षण एवं शोध कार्य किया। ट्रॉपिकल इकोलॉजी के क्षेत्र में ख्याति प्राप्त की तथा 1956 में इंटरनेशनल सोसायटी फॉर ट्रॉपिकल इकोलॉजी की स्थापना की। अनेक राष्ट्रीय तथा अंतरराष्ट्रीय पुरस्कारों पर दूसरी घोषित किए गए।

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