बिहार किसान आंदोलन में स्वामी सहजानंद सरस्वती
पटना में बिहटा के पास किसान नेता स्वामी सहजानंद सरस्वती ने सन्यासी जीवन व्यतीत करते हुए छोटे किसानों और खेतिहर मजदूरों के अधिकार की सुरक्षा हेतु किसान आंदोलन का नेतृत्व किया
बिहार के किसान चंपारण में सफलता मिलने के पास बिहार के किसान उत्साहित है कई जगहों पर जमींदारों एवं ब्रिटिश हुकूमत के विरुद्ध छिटपुट ढंग से विद्रोह हुआ किसानों को संगठित करने का प्रथम प्रयास श्रीकृष्ण सिंह और मोहम्मद जुबेर ने किया इन्होंने 1922 23 में किसानों सभा का गठन किया किंतु किसान आंदोलन का निर्णायक मोड़ स्वामी सहजानंद ने दिया!
4 मार्च 1928 को सोनपुर मेला के अवसर पर एक प्रांतीय किसान सभा की औपचारिक ढंग से स्थापना की गई थी स्वामी सहजानंद इसके अध्यक्ष बनाए गए और श्रीकृष्ण सिंह सचिव थे 1929 में इस सभा की गतिविधि काफी बड़े पैमाने पर आरंभ हुई स्वामी सहजानंद ने कई जगहों पर जैसे गाया मुजफ्फरपुर हाजीपुर इत्यादि स्थानों पर किसान सभा का आयोजन किया जिसमें लाखों किसानों ने भाग लिया और उनमें एक चेतना की लहर दौड़ गई!
बिहार में किसान आंदोलन के स्वामी सहजानंद सरस्वती द्वारा किसान सभा का एक नया जीवन प्रदान किया गया इस आंदोलन में एक नई दिशा दी गई केवल 1933 में 177 सभा की आयोजित की गई जहां स्वामी सहजानंद सरस्वती स्वयं किसानों को संबोधित किया करते थे 16 मार्च 1933 को मधुबनी के प्रांतीय किसान सभा में बिहार किसान सभा को औपचारिक स्वरूप प्रदान करने का प्रयास किया गया किंतु दरभंगा राज की साजिश के कारण यह प्रयास असफल रहा फिर भी एक महीना के भीतर दूसरा प्रांतीय किसान सभा का आयोजन बिहटा में आयोजित किया गया इसके बाद स्वामी जी किसान सभा के निर्विवाद नेता हो गए!
स्वामी सहजानंद सरस्वती के प्रयास से 1933 में एक जांच कमेटी बनी इस कमेटी में किसानों की आर्थिक दशा के तरफ ध्यान दिलाने का काम किया 1936 में अखिल भारतीय किसान सभा का स्थापना लखनऊ में हुई इसके अध्यक्ष स्वामी सहजानंद सरस्वती बनाए गए इस तरह से स्वामी सहजानंद सरस्वती एक अखिल भारतीय किसान सभा के नेता बन गए
बिहार में स्वामी सहजानंद सरस्वती और किसान सभा के लोकप्रिय ता काफी बढ़ गई 1936 में इसकी सदस्यता लगभग ढाई लाख तक पहुंच गई बिहार में गांव में फैलाने में स्वामी सहजानंद सरस्वती को कार्यानंद शर्मा राहुल संघ कृत्यानंद पंचानन शर्मा यदुनंदन शर्मा जैसे वामपंथी नेताओं का सहयोग मिला किसान सभा के कार्यक्रम को लोकप्रिय बनाने की दिशा में बिहार प्रांतीय किसान सभा सम्मेलन और प्रदर्शनों का भी आयोजन किया गया जिसमें लगभग 100000 किसानों ने हिस्सा लिया
1935 ईस्वी में किसान सभा द्वारा जमींदार उन्मूलन का प्रस्ताव पारित किया जा चुका था किसान सभा द्वारा बार-बार जमीदारी प्रथा को उन्मूलन का प्रस्ताव पारित करने का यह एक लोकप्रिय नारा के रूप में लिया बिहार में किसान की दूसरी मांग गैरकानूनी वसूली एवं काश्तकारों की बेदखली का अंत तथा बकाश्त भूमि की वापसी 1937 में कांग्रेस मंत्रिमंडल का गठन हुआ इसमें स्वामी सहजानंद सरस्वती को अपने आंदोलन के प्रति बाल मिला और उनका विश्वास था कि कांग्रेस मंत्रिमंडल उनकी बातों पर अवश्य ध्यान देगी उन्हें कांग्रेस में आस्था थी इससे पहले भी वह किसान की समस्या को लेकर कई बार जवाहरलाल नेहरू से मिल चुके थे
राज्य के शासन की बागडोर संभालते हैं कांग्रेस मंत्रिमंडल ने लगान की दर को कम एवं बकाश्त भूमि को वापसी को लेकर कानून बनाने की प्रक्रिया शुरू कर दी विदाई की के जमींदार सदस्यों की सहमति से जो प्रारूप बना उसे विधायिका के द्वारा कानून का रूप दे दिया गया लेकिन इस प्रारूप को किसान सभा के शीर्ष नेताओं ने मंजूरी नहीं दी क्योंकि बकाश्त भूमि का एक भाग किसानों को वापस मिलना था एवं वहां भी सर इस पर के उस जमीन का वापस जो मिलना है नीलामी में जो मूल्य तय होगा वह किसान द्वारा अदा करना होगा इसके अलावा यह कानून खास वर्ग की जमीन पर लागू नहीं होता था इसके परिणाम स्वरूप बकाश्त जमीन आंदोलन का मुख्य मुद्दा बन गया इन कारणों से स्वामी सहजानंद सरस्वती काफी दुखी हुए और कांग्रेस से जो उन्हें आशा थी वह ध्वस्त हो गया धीरे-धीरे उनका झुकाव साम्यवाद की ओर होने लगा इसी मुद्दे पर वे 1943 में किसान सभा से अलग हो गए उनका रुख अब कार्यकारी हो गया इसी बीच उसके कारण उन्हें तीन बार जेल की यात्रा करना पड़ा किंतु उन्होंने प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रूप से अपनी लड़ाई उस समय तक जारी रखा जब तक उनकी 1950 में मृत्यु नहीं हो गई उनकी मृत्यु के पश्चात उनका सपना पूरा हो सका और 1952 में जमीन दारी व्यवस्था का उन्मूलन कर दिया गया
इस तरह किसान को लंबा विद्रोह करना पड़ा किंतु यह भी स्पष्ट है कि राष्ट्रीय आंदोलन के समय जमींदारों को अपना दुश्मन बनाना उचित नहीं था यही कारण था कि कांग्रेस ने किसानों को हित में जमींदारों को विरुद्ध किसी बड़े कदम को उठाने से परहेज किय परिणाम स्वरूप कांग्रेस के साथ प्रारंभिक तालमेल आगे मतभेद के रूप में सामने आया किसान आंदोलन के नेता कांग्रेस को जमींदारों का संरक्षण मानने लगे वस्तुत ऐसी बात नहीं थी कि कांग्रेस भी जमींदारों द्वारा किसानों का किए जा रहे शोषण से वे न केवल अवगत थे बल्कि इसे गलत भी मानती थी
इस तरह स्वामी सहजानंद सरस्वती ने किसान आंदोलन को एक नई दिशा दी और उसे संघर्षशील बनाने का भरपूर प्रयास किया उन्होंने ब्रिटिश सरकार के साथ-साथ जमींदारों और जमीदारी प्रथा दोनों का विरोध किया उनके आंदोलन का मुख्य उद्देश्य था शोषित और पीड़ित किसानों के शोषण से मुक्ति अतः किसान आंदोलन में स्वामी सहजानंद सरस्वती का योगदान को कभी भुलाया नहीं जा सकता है!