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1857 के विद्रोह में बिहार के योगदान का वर्णन

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1857 के विद्रोह में बिहार के योगदान का वर्णन

बिहार सदियों से विद्रोही क्रांतिकारी की सर जमीन रही है इस सर जमीन में जालिम हुकुम कारों को हमेशा से ललकारा है जब मुग़ल अपने शिखर पर थे तब इसी बिहार के लाल शेरशाह सूरी ने मुगलों को मंसूबों को नाकाम कर दिया फिर जब अंग्रेज आए तब बिहार वासियों ने उनके खिलाफ बगावत और क्रांति का बिगुल फूंका!

1857 का भारतीय विद्रोह जिसे प्रथम भारतीय स्वतंत्रता संग्राम ,सिपाही विद्रोह ,राष्ट्रीय आंदोलन के नाम से भी जानते हैं ब्रिटिश शासन के विरुद्ध है यह एक सशस्त्र विद्रोह था! यह विद्रोह 2 वर्षों तक भारत के विभिन्न क्षेत्रों में चलता रहा विद्रोह की शुरुआत छावनी क्षेत्रों की छोटी सी झड़प और आगजनी से हुई परंतु आगे चलकर यह एक बड़ा रूप ले लिया विद्रोह का अंत भारत में ईस्ट इंडिया कंपनी के शासन समाप्त के साथ हुआ और पूरे भारत पर ब्रिटिश ताज प्रत्यक्ष शासन आरंभ हो गया!

18 57 में अंग्रेजों को भारत से भगाने के लिए हिंदू मुसलमानों ने मिलकर कदम बढ़ाया मंगल पांडे की बहादुरी ने सारे देश में विप्लव मचा दिया बिहार के दानापुर रेजिमेंट बंगाल के बैरकपुर और रामगढ़ के सिपाहियों ने बगावत कर दी मेरठ कानपुर लखनऊ इलाहाबाद झांसी और दिल्ली में भी आग भड़क उठी ऐसे हालत में बाबू कुंवर सिंह ने बिहार ने भारतीय सैनिकों का नेतृत्व किया 27 अप्रैल 1857 को दानापुर के सिपाहियों भोजपुरी जवान हो और अन्य साथियों के साथ आरआर नगर पर वीर कुंवर सिंह ने कब्जा कर लिया! अंग्रेजों की लाख कोशिशों के बाद भी भोजपुर लंबे समय तक स्वतंत्र रहा जब अंग्रेज फौज ने आरा पर हमला करने की कोशिश की तो बीबीगंज और बिहिया के जंगलों में धमासन लड़ाई हुआ बहादुर स्वतंत्रता सेनानी जगदीशपुर की ओर बढ़ गए आरा पर फिर से कब्जा जमाने के बाद अंग्रेजों ने जगदीशपुर पर आक्रमण कर दिया कुंवर सिंह रामगढ़ के बहादुर सिपाहियो के साथ बांदा रीवा आजमगढ़ बनारस बलिया गाजीपुर एवं गोरखपुर में विप्लव का कहर ढाते रहे!

जब भारत ने अंग्रेजों के खिलाफ आजादी की पहली लड़ाई लड़ी तो कई प्रांतों में इसका नेतृत्व आरा के बाबू कुंवर सिंह ने किया उस वक्त उनकी उम्र 80 वर्ष की थी उन्होंने अपने नेतृत्व कौशल से अंग्रेजों की ताकतवर सेना को भी कई मौके पर मौत दी है जब 1857 का यह विद्रोह देश के अन्य प्रांतों में ठंडा पड़ गया तब भी वह अंग्रेजों के खिलाफ लड़ते रहे!

बिहार के प्रमुख मुस्लिम क्रांतिकारी पीर अली खान जो एक गरीब पुस्तक बाइंडर थे जिन्होंने स्वतंत्रता सेनानियों के बीच महत्वपूर्ण पत्र पत्रिकाएं और खुफिया संदेशों को गुप्त रूप से वितरित का करने का काम किया जिसकी सजा में उन्हें तत्कालीन पटना के कमिश्नर विलियम टेलर द्वारा सार्वजनिक स्थानों पर फांसी दे दी गई पीर अली एक स्वतंत्रता सेनानी थे जिन्हें अंग्रेज से लड़ने के कारण फांसी दी गई थी

पीर अली भी 1857 के स्वतंत्रता संग्राम के बिहार चैप्टर के नायक में से एक थे अट्ठारह सौ सत्तावन की क्रांति के वक्त बिहार में घूम-घूम कर लोगों ने आजादी और संघर्ष के लिए जज्बा पैदा करने और उन्हें संगठित करने में उनकी बड़ी भूमिका निभाई थी इसके अलावा नवादा के आती पुर रहने वाले राजा मेहद अली खान ने गुप्त संगठन के माध्यम से अंग्रेजो के खिलाफ संघर्ष चलाया जिसकी वजह से उनका नाम विद्रोहियों के नाम की सूची में सबसे पहले स्थान पर आता है वारिस अली को पटना में मुसलमानों के साथ राजदह आत्मक पत्र व्यवहार के कारण अंग्रेजों ने उन्हें 23 जून 1857 को गिरफ्तार किया और बाद में फांसी दे दिया!

वारिस अली की गिरफ्तारी के बाद अली करीम पर सरकार के खिलाफ बगावत का आरोप लगा अंग्रेजी सरकार ने इन पर ₹2000 के इनाम रखा था जवाहिर रविवार ने नालंदा वार्नर वादक में 18 57 में छापामार युद्ध शुरू किया उसी समय जब देवघर के विद्रोहियों ने नवादा होकर गुजरा तो उन्होंने उनके साथ देकर बगावत का झंडा बुलंद किया!

1857 के विद्रोह के दौरान हैदर अली ने राजगीर को कब्जे में ले लिया था वेन नालंदा के पहले व्यक्ति थे जिन्होंने फांसी की सजा पाई देव करके रोहिणी 12 जून 1857 के विद्रोह के महानायक सलामत अली अमानत अली थे इन्होंने मेजर मैकडोनाल्ड वाकई अधिकारियों पर हमला किया उधर गया के डुमरी वाले मौलवी अली करीम गोरखपुर में अपने क्रांतिकारियों और सहयोगियों का नेतृत्व कर रहे थे 11 जून से पहले तक वह बाबू अमर सिंह के साथ लगातार अंग्रेजों से जंग लड़ रहे थे जब अमर सिंह बिहार लौट रहे थे तब उसी समय अमर सिंह के साथ मिलकर उन्होंने रूपसागर कैंप पर हमला किया ठीक उसी समय अली करीम ने 400 सिपाहियों गाजीपुर में अंग्रेजों से लड़ रहे थे!

इस प्रकार हम कह सकते हैं कि 1857 के स्वतंत्रता संग्राम में बिहार के स्वतंत्रता सेनानियों के साथ कंधे मिलाकर लाखों लोगों ने जनभागीदारी और अपनी कुर्बानी देकर अहम योगदान दिया !

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