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राष्ट्रवाद को परिभाषित कीजिए! रविंद्र नाथ टैगोर ने इसे किस प्रकार परिभाषित किया है?

राष्ट्रवाद क्या है?

भारत में राष्ट्रीयता का विकास ब्रिटिश हुकूमत का शोषण का परिणाम था इस राष्ट्रीयता की भावना भारतीय इतिहास की धारा को प्रभावित किया राष्ट्रीयता के उदय के कारणों का सबसे महत्वपूर्ण कारण है भारतीय जनता का असंतोष रविंद्र नाथ टैगोर ने इसे विश्व मानवता के सिद्धांत के तले नवीनतम स्वरूप प्रदान किया है

राष्ट्रीयता एक चेतना के रूप में है क्योंकि यह संपूर्ण राष्ट्र को एक करने का कारगर उपाय है समकालीन परिवेश में अंग्रेजों की बीवी अधिकारी एवं शोषणकारी नीतियों के कारण उपेक्षित जनसमूह का आंतरिक चेतना है जिसे शिक्षा प्राप्त विद्वानों के द्वारा सैद्धांतिक रूप देकर नई चेतना दी है

19वीं शताब्दी के समाजिक धार्मिक आंदोलन ने भी राष्ट्रीयता की भावना विकसित करने में उल्लेखनीय कार्य किया है ब्रह्म समाज आर्य समाज प्रार्थना समाज इत्यादि ने लोगों में स्वदेश प्रेम की भावना जागृत की है रविंद्र नाथ टैगोर का आगमन राष्ट्रीयता के विकास में महत्वपूर्ण घटना है!

टैगोर का आध्यात्मिक मानववाद

रविंद्र नाथ टैगोर को मानव एकता में पूर्ण विश्वास था वह सृष्टि को एक ता में मानते थे जिसके सभी मनुष्य अंग हैं टैगोर की मान्यता है कि सभी मनुष्य अनंत विश्वात्मा की कृति है जो स्वयं को सुख दख के माध्यम से पूर्णता प्रभावित करते हैं!

 टैगोर के राष्ट्रवाद एवं देश भक्ति


रविंद्र नाथ टैगोर एक कट्टर राष्ट्रवादी थे किंतु उनका राष्ट्रवाद संकीर्ण नहीं था और ना राष्ट्र का उग्र बाद ही उन्हें स्वीकृति था उन्हें यह बात का बहुत दुख होता था कि यूरोप के विभिन्न राष्ट्रों द्वारा एशिया और अफ्रीका के लोगों को गुलाम बना दिया गया जालियांवाला बाग हत्याकांड ने उन्हें इतनी पीड़ा पहुंची कि उन्होंने विदेशी सम्मान सर की उपाधि को भी परित्याग कर दिया उनका देश प्रेम और उनकी राष्ट्रवादी उच्च कोटि की थी गंभीरता पन था किंतु उग्र राष्ट्रवादी ताको वे कतई पसंद नहीं करते थे!

अंतर्राष्ट्रीयता

टैगोर की दृष्टि में विश्व एकता में बांधना चाहते थे उनका मंतव्य था कि राष्ट्रीयता के कारण विश्व प्रेम विकसित नहीं हो पाता है उन्होंने वसुधैव कुटुंबकम का समर्थन किया और भारत तथा विश्व की समस्याओं के समाधान के लिए उन्होंने अंतरराष्ट्रीय वाद की धारणा को प्रतिपादित किया उन्होंने लिखा है कि अब हम यह जानने लगे हैं कि हमारी समस्या विश्वव्यापी समस्या है संसार का कोई भी राष्ट्र अलग रह कर अपना कल्याण नहीं कर सकता उन सभी का विचारधारा अंतरराष्ट्रीय होनी चाहिए!

इस प्रकार रवीना टैगोर ने विश्व मानव बाद एवं अंतरराष्ट्रीय वार्ता व को प्रसार देकर राष्ट्रवाद के दायरे को बढ़ाया इसमें कोई आश्चर्य नहीं है कि गांधी जी ने अहिंसा के सिद्धांत पर टैगोर के मानवीय एवं गैर उग्रवाद राष्ट्रवाद के सिद्धांत का प्रभाव पड़ा रविंद्र नाथ टैगोर जी राष्ट्रवाद के दायरे को बढ़ाने हेतु सदैव हैं स्मरणीय रहेंगे!

टैगोर ने राष्ट्रवाद को कैसे परिभाषित किया,
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